Friday, July 30, 2010

ब्लाग-दुनिया !

झूमा-झटकी
पटका-पटकी
गुत्थम-गुत्था
खेल-कबड्डी

मौज-मस्ती
ढोल-नगाडे
गिल्ली-डंडा
गली-मोहल्ले

चौके-छक्के
गुगली-यार्कर
टेस्ट-वन्डे
टवेंटी-टवेंटी

नौंक-झौंक
टीका-टिप्पणी
नामी-बेनामी
चिट्ठे-चर्चे

गीत-गजल
कविता-कहानी
हास्य-व्यंग्य
ब्लाग-दुनिया !!

Thursday, July 29, 2010

शेर

बडा मुश्किल है जीना, यारों के चलन में
यारों से, रकीबों के रिवाज अच्छे हैं ।
......................................................................

मिटटी
के खिलौने हैं हम सब, मिटटी में ही रचते-बसते हैं

जिस दिन टूट-के बिखरेंगे, मिटटी में ही मिल जायेंगे ।

Tuesday, July 27, 2010

"महात्मा गांधी" जन्म नहीं लेंगे !

भभक रहे भ्रष्टाचारी शोलों को
ठंडा करने
क्या अब इस धरती पर
"मंगल पाण्डे" जन्म नहीं लेंगे

बेलगाम प्रशासन पर
बम फ़ेंकने
क्या अब इस धरती पर
"भगत सिंह" जन्म नहीं लेंगे

दुष्ट-पापियों से लडने को
एक नई सेना बनाने
क्या अब इस धरती पर
"सुभाष चन्द्र" जन्म नहीं लेंगे

एक नई आजादी के खातिर
सत्याग्रह का अलख जगाने
क्या अब इस धरती पर
"महात्मा गांधी" जन्म नहीं लेंगे !!!

प्रार्थना

प्रार्थना से तात्पर्य किसी आवश्यकता की प्राप्ति हेतु अनुरोध करना है, यह अनुरोध प्रत्येक मनुष्य करता है जब कभी भी उसे कुछ विशेष पाने की चाह होती है वह अपने अपने ढंग से अनुरोध अवश्य करता है।

जब किसी मनुष्य को यह प्रतीत होता है कि अमुक सामने वाला व्यक्ति उसके अनुरोध की पूर्ति कर सकता है तब वह उस व्यक्ति से आवश्यकता की पूर्ति हेतु प्रत्यक्ष रूप से अनुरोध कर लेता है किन्तु जब उसे यह जानकारी नहीं होती कि उसकी आवश्यकता की पूर्ति करना किसके हाथ में है तब वह ईश्वर से प्रार्थना करता है।

ईश्वर, ईष्ट देव, गुरु, कुदरती शक्ति प्राप्त किसी व्यक्तित्व के समक्ष जब इंसान प्रार्थना करता है तब उसे इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिये कि प्रार्थना नाम,यश,कीर्ति,सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिये होना चाहिये, कि मन में बसे किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिये।

संभव है ईश्वर ने आपके लिये, आपके द्वारा प्रार्थना में चाहे गए "विशेष उद्देश्य" से हटकर "कुछ और ही लक्ष्य" निर्धारित कर रखा हो, ऎसी परिस्थिति में प्रार्थना में चाहे गए लक्ष्य तथा ईश्वर द्वारा आपके लिये निर्धारित लक्ष्य दोनों समय-बेसमय आपकी मन: स्थिति को असमंजस्य में डालने का प्रयत्न करेंगे।

इसलिये मेरा संदेश मात्र इतना ही है कि जब भी आप प्रार्थना करें नाम, यश, कीर्ति, सुख - समृद्धि प्राप्ति के लिये ही करें।
जय गुरुदेव

( विशेष टीप :- यह लेख आचार्य जी ब्लाग पर प्रकाशित है।)

Sunday, July 25, 2010

'सत्यामृत'

आओ चलें, वहां - जहां
'सत्यामृत' झर रहा है

चलते-चलते न रुकें
बढते-बढते, बढते रहें
हम भी पहुंचे वहां
जहां 'सत्यामृत' झर रहा है

एक बूंद पाकर
हम भी
अजर-अमर हो
"सत्यामृत" बन जाएं

आओ चलें, वहां - जहां
'सत्यामृत' .............।

Friday, July 23, 2010

जात-पात का "ढोंग-धतूरा"

जात-पात का "ढोंग-धतूरा" आज भी कुछ लोगों की नसों में खून की तरह दौड रहा है .... आज भी कुछ लोग जात-पात की "डफ़ली-मंजीरे" बजाने से बाज नहीं रहे हैं..... लेकिन वही लोग जब शहर जाते हैं तब होटल में चाय-भजिया का आनंद लेते समय नहीं पूंछ्ते - किसने बनाया, कौन परोस रहा है ....... फ़िर चाहे मुर्गा-मछली गटा-गट .... दारू के अड्डे पे तो सब भाई भाई .... जब बाहर स्त्री समागम का अवसर मिले तो कोई जात-धर्म नहीं!!

..... फ़िर क्यों कुछ लोग गांव में अथवा मोहल्ले में ही अपनी बडी जात होने का ढिंढोरा पीटने से बाज नहीं आते क्या छोटी जात के लोग गांव में ही बसते हैं या फ़िर गांव पहुंचते ही लोगों की जात बडी हो जाती है .... तभी तो कुछ लोग गांव में किसी-किसी के घर का पानी नहीं पीते .... किसी-किसी के घर उठते-बैठते नहीं .... कुएं पर ऊंची जात - नीची जात के पनघट ..... अजब रश्में-गजब रिवाज !!

..... गांव में उनका अदब हो .... ऊंची जात का होने के नाते मान-सम्मान हो ... क्यों,किसलिये .... क्या ऊंची जात के हैं सिर्फ़ इसलिये ही सम्मान के पात्र हैं ... या फ़िरमान-सम्मान का कोई दायरा होना चाहिये .... क्या मान-सम्मान के लिये सतकर्म, उम्र, व्यवहार का मापदंड नहीं होना चाहिये .... सच तो यही है कि पढे-लिखे समाज में, शहरोंमें, विकासशील राष्ट्रों में मान-सम्मान का दायरा जातिगत होकर निसंदेह व्यवहारिकहै .... आज हमें भी अपनी सोच व्यवहार में बदलाव लाना ही पडेगा .... जात-पात केप्रपंचों से दूर होना पडेगा ... नहीं तो हमारे शिक्षित विकसित होने का क्या औचित्य है !!!

Thursday, July 22, 2010

चिट्ठा चर्चा .... "गुटर-गूं" ... फर्जी वाड़ा का बोलबाला !!!!

दो ब्लागर टेलीफ़ोन पर .... भैय्या प्रणाम ... हां अनुज बोलो ... भैय्या नई पोस्ट लगाया हूं "चर्चा" में ले लेना .... हां बिलकुल हो जायेगा आप निश्चिंत रहें ... हां जरा देखना आजकल कुछ लोग "चर्चा" के पीछे पड गये हैं चर्चा पर सबालिया निशान लगा रहे हैं, पता नहीं क्यों लोग अपने अपने में मस्त नहीं रहते, बेवजह ही हमारी "चर्चा" के पीछे पड रहे हैं ... भैय्या, लोग पीछे इसलिये पडने लगें हैं कि वो अपने आप को एक अच्छा लेखक समझ रहे हैं, पर वे ये भूल जाते हैं कि अच्छा लेखक वो होता है जो "छपने-छपाने" का माद्दा रखता है, जो छपता है वही तो लोग पडते हैं, लोग इस "कडुवे सच" को समझते क्यों नहीं हैं .... ठीक कह रहे हो अनुज, तुम्हारी बातों में दम है फ़िर भी जो लोग उछल रहे हैं उनको तो एक न एक दिन सबक सिखाना ही पडेगा .... भैय्या आप निश्चिंत रहें उनका भी बंठाधार लगाने की योजना बना रहे हैं, ठीक है भैय्या प्रणाम .... खुश रहो अनुज ... !

... तीन-चार दिन बाद पुन: फ़ोन ..... अनुज .... हां भैय्या प्रणाम ..... यार कुछ लिखो तुम्हारा ब्लाग खाली पडा है मुझे "चर्चा" लगानी है .... हां भैय्या वही सोच रहा हूं क्या लिखूं कुछ विषय समझ में नही आ रहा है .... अरे यार एक काम करो आजकल सानिया शादी, आईपीएल, नक्सलवाद पर खूब शोर मचा हुआ है किसी एक पर आठ-दस लाईन लिख कर एक-दो फ़ोटो लगा देना पोस्ट बन जायेगी ..... सही कहा भैय्या ये तो मेरे दिमाग में सूझ ही नहीं रहा था आज ही लगा देता हूं .... देर मत करना आज शाम तक ही लगा देना, रात में मुझे ड्राफ़्टिंग करना है कल सुबह ही "चर्चा" की पोस्ट लगाना है ... हां भैय्या हो जायेगा ... प्रणाम भैय्या ... खुश रहो ... !!

... दूसरे दिन "चर्चा" पर पोस्ट जारी .... पन्द्रह-बीस मिनट में ही "टिप्पणियों" की भरमार .... बढिया ... बहुत सुन्दर .... बहुत खूब ... सार्थक चर्चा ... समसामयिक पोस्टों की सारगर्भित चर्चा ... आभार .... बधाई ... धन्यवाद .... बगैरह बगैरह .... पुन: टेलीफ़ोन .... भैय्या आपने तो कमाल कर दिया क्या लिखते हो, क्या "चर्चा" का अंदाज है, छा गये भैय्या, आशिर्वाद बनाये रखना .... अरे खुश रहो अनुज ..... प्रणाम भैय्या ..... !!!!!

Wednesday, July 21, 2010

शेर बोलते हैं !

इस तरह मुँह फेर कर जाना तेरा
देखना एक दिन तुझे तडफायेगा ।

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फूलों में जबां तुम हो, खुशबू पे फिदा हम हैं
अकेले तुम तो क्या तुम हो, अकेले हम तो क्या हम हैं।

Tuesday, July 20, 2010

.... ब्लागर एक "अंतर्राष्ट्रिय पत्रकार" है !

ब्लागजगत में जो लेखन कार्य युद्ध-स्तर पर चल रहा है लेख, कविता, कहानी, हास्य-व्यंग्य, कार्टून, चर्चा-परिचर्चा, गुफ़्त-गूं, क्रिया-प्रतिक्रिया, यह सभी समाचार के हिस्से हैं इन सभी के समावेश से "समाचार पत्र व पत्रिकाएं" साकार रूप लेती हैं .... "ब्लागजत" पर लेखन को मात्र शौक-पूर्ति नहीं कहा जा सकता यह एक "अंतर्राष्टिय मंच" है .... "अंतर्राष्टिय पत्रकारिता" है ....

... यह सर्वविदित सत्य है कि आये-दिन ब्लागजगत के लेख इत्यादि "प्रिंट मीडिया" में समावेश हो रहे हैं कभी-कभी तो ब्लागिंग "इलेक्ट्रानिक मीडिया" में सुर्खियों का विषय रहा है .... इस बात से कतई इंकार नहीं किया जा सकता कि आने वाले समय में ब्लागजगत "अंतर्राष्टिय पत्रकारिता" का मजबूत स्तंभ होगा .... इसका खुद का अपना एक "संघठन" होगा और सभी ब्लागर "सदस्य" होंगे, जो "अंतर्राष्ट्रिय पत्रकार" के नाम से जाने जायेंगे ...

..... मेरा मानना तो ये है कि अभी से ब्लागजगत के नामचीन ब्लागर मिलकर इस दिशा में सार्थक पहल करते हुये साकार रूप देने के लिये रूप-रेखा तैयार करें .... क्यॊंकि देरे-सबेर यह कार्य तो होना ही है फ़िर आज से क्यॊं नहीं ... "अंतर्राष्टिय पत्रकारिता" का एक "डिजाईन" तैयार होते ही, बुनियादि कार्य में हर एक "ब्लागर" अपनी सारी "ऊर्जा" लगा देगा .... ब्लागजत में स्थापित मेरे साथियों कदम बढाओ "अंतर्राष्टिय पत्रकारिता" का ढांचा तैयार करो ... इमारत तो बना ही लेंगे .... आज मैं इस मंच से एक ऎसा "कडुवा सच" बयां कर रहा हूं जो सिर्फ़ "कडुवा" ही नहीं वरन "मीठा" भी है .... ब्लागर एक "अंतर्राष्ट्रिय पत्रकार" है !

Monday, July 19, 2010

टाप ब्लागर

सुबह-सुबह फ़ोन पर एक "ब्लागर मित्र" ".... भईया ये "टाप ब्लागर" क्या होता है ... "टाप ब्लागर" बनने में कोई बुराई तो नही है .... अरे यार तू भी सुबह-सुबह पकाने बैठ गया कितने दिन से "ब्लागिंग" कर रहा है फ़िर भी नहीं पता ये "टाप ब्लागर" क्या होते हैं .... बात दरअसल ये है सभी "ब्लागों" का लेखा-जोखा "चिट्ठाजगत" व "ब्लागवाणी" में रखा जाता है तात्पर्य ये है किसने कितनी पोस्ट लिखीं, कितने समय के अंतराल में लिखीं, कितने लोगों ने पढीं, कितने लोगों ने टिप्पणी कीं, बगैरह - बगैरह ...।

.... हां एक बात और है जो बहुत ही महत्वपूर्ण है वो है "हवाले" ....भईया अब ये "हवाले-घोटाले" भी यहां सक्रिय हैं .... अरे यार तू चिंतित मत हो "हवाले" एक "कला" है .... "हुनर" है ... ये बहुत ही नायाब औजार है जो किसी भी "ब्लाग" को "तराश" कर आठ-दस दिनों मे ही "चमचमाते हीरे" की तरह "टाप ब्लागर" की दौड में शामिल करा देता है .... और तो और अगर दो-चार "ब्लागर" मिलकर अर्थात "टीम" बना कर "हवाले" करने लगें तो फ़िर आपको "टाप ब्लागर" बनने से कोई रोक ही नहीं सकता ।

.... भईया मुझे भी "टाप ब्लागर" बनने की इच्छा हो रही है अभी-अभी मैने एक-दो "ब्लाग" देखे हैं जो "जुम्मा-जुम्मा" ही शुरु हुये हैं मुश्किल से पन्द्रह-बीस पोस्ट ही लिखीं गईं हैं वे अभी से "टाप ब्लागर" की सक्रियता सूची में ४००,५०० वे नंबर पर पहुंच गये हैं जबकि मैंने तो कम-से-कम ५० पोस्ट से ज्यादा ही लिखी हैं फ़िर भी उनसे पीछे चल रहा हूं ..... भईया अब आप ही मुझे "टाप ब्लागर"की सूची में ऊपर पहुंचा सकते हो ...... अरे यार तू भी मेरे ही पीछे पड गया, तुझे पता है ये "टाप ब्लागर"और "हवाले" के "यूनिक फ़ंडों" से मैं कितना दूर रहता हूं ... हां अगर तुझे "टाप ब्लागर" बनना ही है तो किसी "ब्लागिंग गुरु" से अविलंब टेलीफ़ोन अथवा ई-मेल से संपर्क कर ले ... वह तुझे निश्चिततौर पर "टाप ब्लागर" बना सकता है ... मेरी भी शुभकामनाएं हैं तू जल्दी ही "टाप ब्लागर" बने।

Sunday, July 18, 2010

प्रेम-वासना

फ़ूल-खुशबू
रात-चांदनी
धरा-अंबर
हम-तुम

गीत -सुहाने
बातें-पुरानीं
नौंक - झौंक
हम-तुम

सर्द-हवाएं
गर्म-फ़िजाएं
तपता - बदन
हम-तुम

गर्म - सांसें
सर्द - बाहें
प्रेम-वासना
हम - तुम !

Saturday, July 17, 2010

मन ही मंदिर है !

मंदिर वह पवित्र स्थल जहां ईश्वर का वास होता है, इस धरा पर अनेक धर्म व अनेक ईश्वर हैं, प्रत्येक धर्म ने अपने अपने ईश्वर के लिये स्थान सुनिश्चित कर रखा है जिसे शाब्दिक भाषा में मंदिर, चर्च, मस्जिद, गुरुद्वारा इत्यादि के नाम से जाना जाता है।

यहां पर मैं उस ईश्वर की चर्चा करना चाहता हूं जो किसी धर्म विशेष का न होकर मानव जाति का है, मेरा सीधा-सीधा तात्पर्य मानव जाति अर्थात समाज से है, वो इसलिये जब मानव जन्म लेता है तब उसका कोई धर्म नही होता, वह जिस धर्म को मानने वाले परिवार में जन्म लेता है वह ही उसका धर्म हो जाता है, यह धर्म उसे विरासत में मिलता है।

यहां यह स्पष्ट करना चाहूंगा कि मैं सभी धर्म को समान रूप से मानता हूं व सम्मान देता हूं लेकिन मैं मानव धर्म को प्राथमिक तौर पर सर्वोपरी मानता हूं, वो इसलिये तत्कालीन उपजे हालात व परिस्थितियों में मानव धर्म स्वमेव सर्वोपरी हो जाता है, किसी पीडित व दुखियारी की मदद के समय इंसान यह नही सोचता कि वह किस धर्म या संप्रदाय का है, यह ही मानव धर्म है।

मानव, मानव धर्म, मन ही मंदिर ... यहां मानव से तात्पर्य इंसान से, मानव धर्म से तात्पर्य इंसानियत से, मन ही मंदिर से तात्पर्य मानव के मन से है ... मानव का मन ही वह स्थल है जहां ईश्वर सकारात्मक सोच व ऊर्जा के रूप में वास करता है और मनुष्य को सतकर्म का मार्ग प्रशस्त करते हुये जीवन दर्शन कराता है ... मानवीय सोच, ऊर्जा व ईश्वर का वास मन रूपी मंदिर में होता है अर्थात मन ही मंदिर है !
जय गुरुदेव

( विशेष टीप :- यह लेख आचार्य जी ब्लाग पर प्रकाशित है।)

Friday, July 16, 2010

शेर

ताउम्र समेटते रहे दौलती पत्थर
मौत आई तो मिटटी ही काम आई ।

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वो बन गये थे रहनुमा, मुफ्त में खिलौने बाँटकर
खिलौने जान ले-लेंगें, ये सोचा नहीं था ।

Wednesday, July 14, 2010

समर

एक दिन अपने आप को
'समर' में अकेला पाया
बेरोजगारी-गरीबी-रिश्वतखोरी
भुखमरी-भ्रष्टाचारी-कालाबाजारी
समस्याओं से गिरा पाया

मेरे मन में
भागने का ख्याल आया
भागने की सोचकर
चारों ओर नजर को दौडाया
पर कहीं, रास्ता न नजर आया
किंतु इनकी भूखी-प्यासी
तडफ़ती-बिलखती आंखों को
मैं जरूर भाया

फ़िर मन में भागने का ख्याल
दोबारा नहीं आया
सिर्फ़ इनसे लडने-जूझने
इन्हें हराकर
'विजेता' बनने का हौसला आया

समर में, इनके हाथ मजबूत
आंखें भूखी, इरादे बुलंद
और तरह-तरह के हथियारों से
इन्हें युक्त पाया
और सिर्फ़ एक 'कलम' लिये
इनसे लडता-जूझता पाया

मेरी 'कलम'
और
इन समस्याओं के बीच
समर आज भी जारी है
इन्हें हराकर
'विजेता' बनने का प्रयास जारी है ।

Sunday, July 11, 2010

"बंधुवा मजदूर"

"बंधुवा मजदूर" समाज में व्याप्त एक समस्या है, समस्या इसलिये कि मजदूर अपनी मर्जी का मालिक नहीं रहता वह हालात व परिस्थितियों के भंवर जाल में फ़ंस कर "बंधुवा मजदूर" बन जाता है, होता ये है कि अक्सर गरीब इंसान खेती-किसानी के मौसम के बाद बेरोजगार हो जाता है तब उसके पास खाने-कमाने का कोई जरिया नजर नही आता तो वह कुछ "लेबर सरदारों" के चंगुल में फ़ंस कर मजदूरी करने के लिये प्रदेश से बाहर चला जाता है और वहां उसकी स्थिति "बंधुवा मजदूर" की हो जाती है ।

प्रदेश से बाहर कमाने-खाने जाने वाला मजदूर बंधुवा अर्थात बंधक मजदूर कैसे बन जाता है, होता ये है कि वह जिस "लेबर सरदार" की बातों में आकर बाहर कमाने-खाने जाता है वह "सरदार" उस मजदूर की मजदूरी के बदले में मालिक से छ: माह अथवा साल भर की मजदूरी रकम एडवांस में ले लेता है जिसका कुछ अंश वह मजदूर को दे देता है तथा शेष रकम को वह अपने पास रख लेता है, मजदूर वहां काम करने लगता है और "सरदार" वापस चला जाता है।

होता दर-असल ये है कि "मालिक और लेबर सरदार" के बीच क्या बात हुई तथा क्या लेन-देन हुआ इससे वह मजदूर अंजान रहता है तथा काम करते रहता है, जब वह तीन-चार माह काम करने के पश्चात घर-गांव वापस जाने को कहता है तो मालिक उसे जाने से मना कर देता है और कहता है "... तेरा छ: माह का मजदूरी दे चुका हूं तुझे छ: माह काम करना ही पडेगा ..." ... चूंकि मजदूर के पास वापस जाने के लिये रुपये नहीं होते हैं और उसे उसके तीन-चार माह के काम का मेहनताना नहीं मिला होता है तो वह मजबूर होकर काम जारी रखता है जब तक "लेबर सरदार" नहीं आ जाये तब तक वह "बंधुवा मजदूर" बनकर काम करते रहता है।

Thursday, July 8, 2010

शेरों की चाहत

कुछ इस तरह अंदाजे बयाँ है तेरा
जिधर देखूँ बस तू ही तू आता है नजर।

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ये सच है तूने आँखों में समुन्दर को बसा रख्खा है
कितना गहरा है ये तो डूबकर ही बता पायेंगे ।

Monday, July 5, 2010

भ्रष्टाचार का बोल-बाला

भ्रष्टाचार का चारों ओर बोल-बाला है और-तो-और लगभग सभी लोग इसमे ओत-प्रोत होकर डूब-डूब कर मजे ले रहे हैं, आलम तो ये है कि इस तरह होड मची हुई है कि कहीं भी कोई छोटा-मोटा भ्रष्टाचार का अवसर दिखाई देता है तो लोग उसे हडपने-गुटकने के लिये टूट पडते हैं, सच तो ये भी है कि हडपने के चक्कर मे कभी-कभी भ्रष्टाचारी आपस में ही टकरा जाते हैं और मामला उछल कर सार्वजनिक हो जाता है और कुछ दिनों तक हो-हल्ला, बबाल बना रहता है .......फ़िर धीरे से यह मसला किसी बडे भ्रष्टाचारी द्वारा "स्मूथली" हजम कर लिया जाता है .... समय के साथ-साथ हो-हल्ला मचाने वाले भी भूल जाते हैं और सिलसिला पुन: चल पडता है !

भ्रष्टाचार की यह स्थिति अब दुबी-छिपी नही है वरन सार्वजनिक हो गई है, लोग खुल्लम-खुल्ला भ्रष्टाचार कर रहे हैं कारण यह भी है कि अब भ्रष्टाचार को "बुरी नजर" से नही देखा जा रहा वरन ऎसे लोगों की पीठ थप-थपाई जा रही है और उन्हे नये-नये "ताज-ओ-तखत" से सम्मानित किया जा रहा है।

भ्रष्टाचार के प्रमाण ..... क्यों, किसलिये ..... क्या ये दिखाई नही दे रहा कि जब कोई अधिकारी-कर्मचारी नौकरी में भर्ती हुआ था तब वह गांव के छोटे से घर से पैदल चलकर बस में बैठकर आया था फ़िर आज ऎसा क्या हुआ कि वह शहर के सर्वसुविधायुक्त व सुसज्जित आलीशान घर में निवासरत है और अत्याधुनिक गाडियों में घूम रहा है ..... बिलकुल यही हाल नेताओं-मंत्रियों का भी है ...... क्यों, क्या इन लोगों की लाटरियां निकल आई हैं या फ़िर इन्हे कोई गडा खजाना मिल गया है?

भ्रष्टाचार की दास्तां तो कुछ इतनी सुहानी हो गई है कि .... बस मत पूछिये.... जितनी भ्रष्टाचारियों की वेतन नही है उससे कहीं ज्यादा उनके बच्चों की स्कूल फ़ीस है ...फ़िर स्कूल आने-जाने का डेकोरम क्या होगा !!!!!!