Tuesday, August 31, 2010

अंगप्रदर्शन .... इतना विरोध क्यों !!!

आये दिन सुनने व देखने को मिलता है कि फ़ला महिला संघठन ने, फ़ला पार्टी ने फ़िल्मों में हो रहे अश्लील व भद्दे प्रदर्शन का जमकर विरोध किया .... घंटों नारेबाजी चली ... फ़िल्म का प्रदर्शन नहीं होने दिया ...पोस्टर फ़ाड दिये गये ... फ़ला शहर, फ़ला राज्य में फ़िल्म रिलीज नहीं होने देंगे ... बगैरह ...बगैरह ....लेकिन क्या फ़र्क पडता है कुछ समय की "चिल्ल-पों" ...फ़िर वही, जो होता आया है, जो हो रहा है ... फ़िल्म रिलीज... हाऊसफ़ुल ... ब्लैक टिकिट की मारा-मारी .... फ़िल्म ने आय के नये कीर्तिमान बनाये ... सुपर-डुपर हिट ... करीना ने क्या काम किया ... क्या सीन है ... मजा आ गया ...

.... अब क्या कहें फ़िल्म तो फ़िल्म हैं बनते आ रही हैं बनते रहेंगी ... अंगप्रदर्शन ...चलता है थोडा-बहुत तो हर फ़िल्म में रहता है ये कोई आज की बात नहीं है ३०-४० साल पहले की फ़िल्मों मे भी देखने मिल जाता है ... आज करीना... कैटरीना ...सुश्मिता ...प्रियंका ... ऎसा कुछ अलग नहीं कर रहीं जो मुमताज ...बैजयंती माला ...सायरा बानो ने नहीं किया ... ये बात और है कि पहले सब "स्मूथली" चलता था पर अब पहले विरोध बाद में सब "टांय-टांय" फ़िस्स ...विरोध भी इसलिये कि विरोध करना है ....

...खैर छोडो ये सब तो चलते रहता है ...छोडो, क्यों छोडो ... अरे भाई, जब फ़िल्म बनाने वाले, फ़िल्म में काम करने वाले, फ़िल्म देखने वाले ... सब खुश, तो बेवजह का विरोध क्यों ... चलो ये सब तो ठीक है फ़िल्मों में विभत्स हत्याएं, दिलदहला देने वाले बलात्कार के द्रष्य, अंग-भंग के क्रुरतापूर्ण द्रष्य, अजीबो-गरीब लूट-डकै्ती के कारनामे, बच्चों का क्रुरतापूर्ण शोषण, तरह तरह के आपराधिक फ़ार्मूले दिखाये जाते हैं उनका विरोध क्यों नहीं ...क्या इन सीन/द्रष्यों को देखकर रोंगटे खडे नहीं होते! क्या इस तरह के फ़िल्मांकन को देखकर मन विचलित नहीं होता ... क्या फ़िल्मों में सिर्फ़ अंगप्रदर्शन के द्रष्य ही दिखाई देते हैं !! ...ठीक है विरोध जायज है पर अंगप्रदर्शन का ही इतना विरोध क्यों, किसलिये !!!

Sunday, August 29, 2010

सत्य-अहिंसा

सत्य-अहिंसा के पथ पर
आगे बढने से डरता हूं
कठिन मार्ग है मंजिल तक
रुक जाने से डरता हूं

हिंसा रूपी इस मंजर में
कदम पटक कर चलता हूं
कदमों की आहट से
हिंसा को डराते चलता हूं

झूठों की इस बस्ती में
फ़ंस जाने से डरता हूं
'सत्य' न झूठा पड जाये
इसलिये "कलम" दिखाते चलता हूं

सत्य-अहिंसा के पथ पर
आगे बढने ......................।

Friday, August 27, 2010

शेर

कभी हम चाहते कुछ हैं, हो कुछ और जाता है
जतन की भूख है ऎसी, अमन को भूल जाते हैं ।

...................................................

तुम्हे फुर्सत-ही-फुर्सत है, ‘आदाब-ए-मोहब्बत’ की
हमें फुर्सत नहीं यारा, ‘सलाम-ए-मोहब्बत’ की ।

Thursday, August 26, 2010

पुलिस का डंडा

पुलिस का डंडा कहां है
पुलिस वाले तो निहत्थे खडे हैं
अब कोई डरे, क्यों डरे
निहत्थों से भला कोई डरता है क्या !

पुरानी कहावत है -
जिसकी लाठी उसकी भैंस
जब डंडा नहीं तो काहे की भैंस

मैंने पूछा एक पुलिस वाले से
क्यों भाई आपका डंडा कहां है ?
वह मुस्कुरा कर बोला, साहब जी
डंडा "अलादीन" का "जिन्न" ले गया

तो रगडो "चिराग" को
वह बोला - चिराग बडे लोगों के पास है
उनसे कहो रगडने के लिये
उनसे कहने की जुर्रत किसकी है !!!

अगर कोई कह भी दे
तो उनके हाथ खाली कहां हैं
दोनों हाथों में "कुर्सी"
और पैरों में "चिराग" उल्टा पडा है

उन्हें डंडे की कहां, अपनी कुर्सी की पडी है
मतलब अब निहत्थे ही रहोगे
निहत्थे रहकर
कानून और जनता की रक्षा कैसे करोगे

पुलिस वाला बोला - साहब जी
खेत में खडा "बिजूका" भी तो निहत्था खडा है
सदियों से खेत की रक्षा करता रहा है
हम भी "बिजूका" बन कर रक्षा करेंगे

जो डरेगा उसे डरा देंगे
जो नहीं डरा उसे .......

हमारा क्या होगा
ज्यादा से ज्यादा कोई "भैंसनुमा" मानव
धक्का मार कर गिरा देगा
कानून और जनता की धज्जियां उडा देगा

मतलब अब कानून और जनता की खैर नहीं
नहीं साहब जी
कानून, जनता और पुलिस तीनों की खैर नहीं ।

Saturday, August 21, 2010

.....मैं अच्छा लेखक हूं !!!!

मैं अच्छा लेखक हूं .... क्यों हूं ..... मैं बहुत अच्छा लिख रहा हूं , मेरे अच्छा लिखने का अगर कोई मापदण्ड है तो वो है "टिप्पणियां" ........ अरे भाई "टिप्पणियां" तब ही कोई मारेगा जब मैं अच्छा लिखूंगा, नहीं लिखूंगा तो कोई भला क्यों टिप्पणी करेगा .... बिल्कुल सही कहा ... अच्छे लिखने का मापदण्ड तो निश्चिततौर पर "टिप्पणियां" ही हैं जब "टिप्पणियां" मिल गईं तो स्वभाविकतौर पर अच्छा ही लिखा गया है , नहीं तो किसी को क्या पडी थी "टिप्पणियां" मारने की, .... किसी को खुजली तो नहीं हुई है जो बेवजह ही "टिप्पणियां" ठोक देगा .... अब ५०, १००, १५०, "टिप्पणियां" मिल रही हैं इसका सीधा-सीधा मतलब यही है कि .... मैं अच्छा लेखक हूं !!!!

...... इसके अलाबा एक और मापदण्ड है अच्छा लिखने का ... वो क्या है ? ... अरे भाई आजकल "हवाले" का भी बोलबाला है ..... अब "हवाले" की दौड में हर कोई तो आ नहीं सकता, जिसकी "सैटिंग" होगी वह ही "हवाले" की दौड में दौड पायेगा ... "हवाले" की दौड में भी "सैटिंग" होती है क्या !!!! .... बिल्कुल होती है!!!!!!! ... क्या "हम-तुम" हवाले कर सकते हैं, शायद नहीं ... वो इसलिये कि "हवाले" हर किसी की बस की बात नहीं है !!! .... चलो कोई बात नहीं "टिप्पणियां" और "हवाले" की "सैटिंग" को दूर से ही "राम-राम" कर लेते हैं ........ कोशिश यही कर लेते हैं कि कुछ अच्छा ही लिख लेते हैं !!!!!!!!!!!

Wednesday, August 18, 2010

धर्म - अधर्म क्या है !

धर्म - अधर्म क्या है ! मानव धर्म व मानवीय द्रष्ट्रिकोण से देखें तो धर्म व अधर्म की बेहद संक्षिप्त परिभाषा है किन्तु परिणाम बेहद विस्तृत हैं, सदभावना पूर्ण ढंग से किये गये कार्य धर्म हैं तथा दुर्भावना पूर्ण ढंग से किये गये कार्य अधर्म हैं।

सदभावना पूर्ण ढंग से किये गये कार्य सदैव ही मन को शांति प्रदान करते हैं, परिणाम सकारात्मक या नकारात्मक अथवा सामान्य प्राप्त हो सकते हैं किन्तु कार्य संपादन के दौरान चारों ओर शांति व सौहार्द्र का वातावरण बना रहता है।

दुर्भावना पूर्ण ढंग से किये गये कार्य सदैव ही मन को विचलित रखते हैं, कार्य आरंभ से लेकर समापन तक मन में व्याकुलता व अनिश्चितता बनी रहती है परिणाम सकारात्मक होने के पश्चात भी मन में संतुष्टि का अभाव रहता है।

जय गुरुदेव
( विशेष टीप :- यह लेख आचार्य जी ब्लाग पर प्रकाशित है।)

Monday, August 16, 2010

शेर : मंजिलें

पीछे पलट के देखने की फुर्सत कहाँ हमें
कदम-दर-कदम हैं मंजिलें बडी ।

........................................

हम जानते हैं तुम, मर कर न मर सके
हम जीते तो हैं, पर जिंदा नही हैं।

Saturday, August 14, 2010

कर्म

मैं
निर्माण करूंगा
भाग्य का

मेरे विचार
कर्म का रूप लेंगे
कर्म का प्रत्येक अंश
मेरे भाग्य की
आधारशिला होगी

हर पल
मेरे विचार - मेरे कर्म
ही मेरे भाग्य बनेंगे
और मैं ................. ।

स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई शुभकामनाएं

Thursday, August 12, 2010

"भाऊ का इंटरनेशनल सर्कस"

चलिये आज चर्चा करते हैं इंटरनेट जगत के विश्व प्रसिद्ध सर्कसकार "भाऊ" .... भाऊ एक ऎसा नाम जिसे इंटरनेट की दुनिया के बच्चे बच्चे , महिला-पुरुष सभी जानते हैं ... उनकी कहानियां मुंहजुबानी कुछ महानुभाव व महापुरुष टाईप के बुद्धिजीवियों के पास सुनने मिल जायेंगी ...

... भाऊ का सर्कस ... एक हंसीला-जोशीला सर्कस है जो जबरदस्त कामेडी है ... इस सर्कस के मुख्य किरदार ... सल्पना मैडम, सर्मीला मैडम, भालित बाबू, बगैरह ... और स्वंय जोशीले-हटीले भाऊ ... इस सर्कस पर अक्सर बर्फ़ के गोले, गुपचुप के ढेले, अंगूर के रस, अस्पताली कारनामें, भंग के गोले, जंतर-मंतर के अजब-गजब कारनामें पेश किये जाते हैं ये कारनामें भी गोल्डन होते हैं यहां से करोडों रुपये जीते जा सकते हैं क्योंकि यहां सब गोल्डन ही गोल्डन है ...

... इस सर्कस का मुख्य आकर्षक आईटम है ... चुटकुलों का जंतर-मंतर ... जी हां ... यहां आये-दिन चुटकुले पटक दिये जाते हैं यह एक जंतर-मंतर नुमा खेल है ... इसमें कुछ बुद्धीजन घुस जाते हैं जो सफ़लतापूर्वक निकल आते हैं उन्हें पुरुष्कार स्वरूप एक "छडी" प्रदाय की जाती है और उन्हें आजीवन सर्कस का सदस्य बना लिया जाता है फ़िर वे भी सर्कस के हिस्से बन जाते हैं और किसी न किसी आईटम कार्यक्रम में छडी हिलाते देखे जाते हैं ... सभी "छडी" धारकों के फ़ोटो सर्कस के गेट पर व संपूर्ण मेले में लगाये जाते हैं ... ताकी कुछ और झमूरे आकर्षित होकर पहुंचे ...

... फ़िलहाल तो भाऊ का इंटरनेशनल सर्कस सफ़लता पूर्वक जारी है ... नई ऊंचाईयों को छू रहा है ... हमारी भी शुभकामनाएं हैं कि भाऊ अपने सर्कस में कुछ नये झमूरे और शामिल करें तथा सर्मीला मैडम का एक आईटम सांग प्रत्येक शो मैं अवश्य रखें ... साथ ही साथ भालित बाबू को भी मुख्य किरदार में पेश करें ... सभी जंतर-मंतर शो के विजेताओं को सर्कस के ओपनिंग शो में छडी घुमाते हुये अवश्य दिखाएँ ... हमारी शुभकामनाएं ... जय हो भाऊ सर्कस की ... !!!!
(निर्मल हास्य)

Tuesday, August 10, 2010

कातिल अदाएँ

पैसा बडा है, ईमान बदल दे
पर इतना भी नहीं, कि कुदरत को बदल दे।

...............................

नही है खौफ बस्ती में, तेरी खुबसूरती का
खौफ है तो, तेरी कातिल अदाएँ हैं ।

Sunday, August 8, 2010

क्या हम मन के गुलाम हैं !

मनुष्य का मन जिसकी शक्ति अपार है, मन की मंथन क्रिया से ही आधुनिक अविष्कार हुए हैं और होते ही जा रहे हैं, मन कभी इधर तो कभी उधर, कभी इसका तो कभी उसका, मन हर पल चंचल स्वभाव से ओत-प्रोत रहता है, पल में खुश तो पल में नाराज।

कहने को तो हम यह ही कहते हैं कि जो हम चाहते हैं वह ही मन करता है, पर हम कितने सही हैं, कहीं ऎसा तो नहीं ये हमारा भ्रम है कि मन हमारी मर्जी के आदेश पर काम करता है, कहीं ऎसा तो नहीं हम स्वयं ही मन के गुलाम हैं जो मन कहता है वह करते हैं जो उसे पसंद है वह करने को आतुर रहते हैं।

यह मनन करने योग्य है, सुबह से उठकर रात के सोने तक क्या हम वह ही करते हैं जो मन कहता जाता है, चाय, दूध, नाश्ता, पान, गुटका, जूस, मदिरा, वेज, नानवेज, प्यार, सेक्स, दोस्ती, दुश्मनी, चाहत, नफ़रत ... संभवत: वह सब करते हैं जो मन कहता जाता है।

जरा आप विचार करें, कितने बार ऎसा हुआ है कि आपने कुछ कहा हो और मन ने किया हो, शायद बहुत ही कम या ऎसा हुआ ही न हो, जरा बैठ के ठंठे दिमाग से सोचिये ... कहीं आप मन के गुलाम तो नहीं हैं !

जय गुरुदेव

( विशेष टीप :- यह लेख आचार्य जी ब्लाग पर प्रकाशित है।)

Friday, August 6, 2010

"मुफ़्त की नसीहतें"

तीन दोस्त बहुत दिनों बाद मिले ... मिलकर खुश हुये ... जिंदगी के सफ़र पर चर्चा शुरु ... क्या कर रहा है ... क्या हालचाल है ... सफ़र कुछ ऎसा था कि दो अमीर हो गये थे धन-दौलत बना ली थी तथा एक अपनी सामान्य जीवन शैली में ही गुजर-बसर कर रहा था ... उसकी भी बजह थी वह कहीं किसी के सामने झुका नहीं ... नतीजा भी वही हुआ जो अक्सर होते आया है, जो झुकते नहीं अपने ईमान पर अडिग होते हैं, जी-हजूरी व दण्डवत होने की परंपरा से दूर रहते हैं उन्हें कहीं-न-कहीं जिंदगी की "दौलती दुनिया" में पिछडना ही पडता है ...

... खैर ये कोई सुनने-सुनाने वाली बातें नहीं है लगभग सब जानते हैं .... हुआ ये कि दोनो सफ़ल दोस्त मिलकर तीसरे पर पिल पडे .... देख यार ये ईमानदारी व सत्यवादी परंपरा किताबों में ही अच्छी लगती है .... थोडा झुक कर, चापलूसी कर, समय-बेसमय पैर छूने में बुराई ही क्या है ... अपन जिनके पैर छूते हैं वे किन्हीं दूसरों के पैर छू-छू कर चल रहे होते हैं ये परंपरा सदियों से चली आ रही है ... चल छोड, ये बता नुक्सान किसका हो रहा है ... तेरा न, उनका क्या बिगड रहा है ... वो कहावत है "तरबूजा चाकू पर गिरे या चाकू तरबूजे पर गिर जाये कटना तो तरबूजे को ही पडता है" ...

... देख यार अपने बीवी-बच्चों के लिये, शान-सौकत के लिये थोडा झुकने में बुराई ही क्या है ... देख आज हमने पचास-पचास लाख का बंगला बना लिया, दो-दो एयरकंडिशन गाडियां हैं बच्चों के भविष्य के लिये पच्चीस-पच्चीस लाख बैंक में जमा कर दिये ...और तू ... आज भी वहीं का वहीं है ... खैर छोडो बहुत दिनों बाद मिले हैं कुछ "इन्जाय" कर लेते हैं....

... सुनो यार बात जब निकल ही गई है तो मेरी भी सुन लो जिस काम को तुम लोग परंपरा कह रहे हो अर्थात किसी के भी पैर छू लेना, जी-हजूरी में उनके कुत्ते को नहाने बैठ जाना, चाय खत्म होने पर हाथ बढाकर कप ले लेना, और तो और जूते ऊठाकर दे देना बगैरह बगैरह .... आजकल लोग बने रहने के लिये किन किन मर्यादाओं को पार कर रहे हैं ये बताने की जरुरत नहीं समझता, तुम लोग भली-भांति जानते हो और कर भी रहे हो .... रही बात मेरी ... तो मैं अपनी जगह खुश हूं ... जानता हूं चाहकर भी मैं खुद को नहीं बदल सकता .... ये "मुफ़्त की नसीहतें" जरा संभाल के रखो अपने किसी चेले-चपाटे को दोगे तो कुछ पुण्य भी कमा लोगे !

Thursday, August 5, 2010

भिखारी

अपने देश में भिखारियों की संख्या दिन-व-दिन बढते जा रही है गली-मोहल्लों, चौक-चौराहों, गांवों-शहरों, धार्मिक स्थलों, लगभग हर जगह पर भिखारी घूमते-फ़िरते दिख जाते हैं और तो और रेल गाडियों में भी इनका बोलबाला है हर गाडी, हर डिब्बे में भिखारी दमक जाते हैं और चालू ....दे दाता के नाम.... भगवान भला करे .... ।

मूल समस्या ये है कि जब आम आदमी प्लेटफ़ार्म पर बिना टिकट जाने से डरता है तो ये भिखारी ट्रेन में कैसे घुस जाते हैं और अपने कारनामों को कैसे अंजाम देने लगते हैं ...... ट्रेन में अगर कोई बिना टिकट चढ जाये तो टी टी ई अथवा रेल्बे पुलिस की "गिद्ध निगाह" से बच नहीं सकता फ़िर ये भिखारी खुलेआम ट्रेनों में कैसे भीख मांग रहे हैं .... क्या रेल प्रशासन व प्रबंधन की मिलीभगत से ये कारनामे हो रहे हैं ? ..... अगर नहीं, तो इन्हें ट्रेन में चढने ही क्यों दिया जाता है !!!

अपने देश में कार्यरत ढेरों "एन जी ओ" क्या इतना भी नहीं कर सकते कि चंद बेसहारा व असहाय लोगों को दो वक्त की "रोटी" व "झोपडी" मुहईया करा सकें !!!

Sunday, August 1, 2010

अर्जुन व कर्ण ... बलशाली कौन !!!

चलो आज एक सुनी-सुनाई प्रस्तुत है : -

महाभारत काल में रणभूमि में कौरव व पाण्डवों के बीच युद्द चल रहा था .... आमने-सामने अर्जुन व कर्ण ... अर्जुन व कर्ण जब एक-दूसरे पर वाण चलाते तो वार तो कट जा रहा था ... पर अर्जुन के वार से कर्ण का रथ चार कदम पीछे चला जाता था और कर्ण के वार से अर्जुन का रथ दो कदम पीछे जाता था ... इसी बात पर विश्राम के समय में अर्जुन इठलाते हुये श्रीकृष्ण से कहते हैं कि देखिये आप कहते हैं कि कर्ण मुझसे भी ज्यादा बल शाली है, देखा आपने आज मेरे आक्रमण से कर्ण का रथ चार कदम पीछे और उसके आक्रमण पर अपना रथ मात्र दो कदम पीछे जा रहा था यह प्रमाणित हो रहा है कि मैं कर्ण से ज्यादा बलशाली हूं ... श्रीकृष्ण मुस्कुराते हुये कहते हैं ... हे वत्स अर्जुन ये तुम्हारा अहं बोल रहा है मैं अब भी कहता हूं कर्ण ज्यादा बलशाली है वो इसलिये जब तुम्हारे रथ पर हनुमान जी का ध्वजारूपी जो झंडा लगा है उस पर उनका आशिर्वाद है और साक्षात मैं तुम्हारा सारथी हूं फ़िर भी तुम्हारा रथ पीछे चला जा रहा है इससे अब तुम स्वयं अंदाजा लगा सकते हो कि कौन ज्यादा बलशाली है .... यह तो अधर्म के विरुद्ध धर्म की लडाई है तुम तो अपना कर्म जारी रखो ..... !!!!