Monday, September 13, 2010

चांदी के सिक्के

दोस्तो क्यों परेशान होते हो,
क्यों हैरान होते हो,
चांदी के चंद सिक्कों के लिए,
ज़रा सोचो,
चांदी के सिक्कों का करोगे क्या !

क्या इन सिक्कों को
आंखो पर रखने से नींद आ जाएगी,
या फिर इनसे,
रात की करवटें रुक जायेंगी,
और तो और, क्या कोई बतायेगा,
कि इन सिक्कों को देख कर,
क्या ‘यमदूत’ डर कर लौट जायेंगे,

या फिर, इन सिक्कों पर बैठ कर,
तुम स्वर्ग चले जाओगे,
या इन्हें जेब में रख कर,
अजर-अमर हो जाओगे,
अगर तुम सोचते हो,
ऐसा कुछ हो सकता है,
तो चांदी के सिक्के अच्छे हैं,
और तुम्हारी इनके लिए मारामारी अच्छी है,

अगर ऐसा कुछ न हो सके,
तो तुम से तो,
तुम्हारे चांदी के सिक्के अच्छे हैं,
तुम रहो, या न रहो,
ये सिक्के तो रहेंगे,
न तो तुम्हारे अपने और न ही ये सिक्के,
तुम्हें कभी याद करेंगे,

अगर ऐसा हुआ या होगा !
फिर ज़रा सोचो,
क्यों परेशान होते हो,
चांदी के चंद सिक्कों के लिए,
अगर होना ही है परेशान,
रहना ही है जीवन भर हलाकान्,
तो उन कदमों के लिए हो,
जो कदम उठें तो,
पर उठ कर कदम न रहें,
बन जायें रास्ते,
सदा के लिए, सदियोँ के लिये,
न सिर्फ तुम्हारे लिए,
न सिर्फ हमारे लिए..........।

Sunday, September 12, 2010

क्या महिलाओं के बिना मानव जीवन संभव है !!!

महिलाओं के बिना मानव जीवन की कल्पना करना क्या उचित है ... आये दिन सुनने - पढने में आता है कि कन्याओं को जन्म से पहले ही मार दिया जा रहा है आखिर क्यों लोग पुत्र ही पैदा करने के लिये उत्साही हो रहे हैं, पुत्र के जन्म को गर्व का विषय क्यों माना जा रहा है, पुत्र के जन्म पर खुशियां और पुत्री के जन्म पर मायुसी का आलम .... क्यों , किसलिये !!! .... पुत्र या पुत्री के जन्म में ये भेदभाव क्या प्राकर्तिक, सामाजिक व व्यवहारिक रूप से उचित है .... नहीं, यह भेदभाव सर्वथा अनुचित है।

...जरा सोचो अगर यह सिलसिला चलता रहा तो धीरे-धीरे लडकिओं की संख्या घटते जायेगी और लडकों की संख्या बढते जायेगी, एक समय आयेगा जब चारों ओर लडके ही लडके नजर आयेंगे और लडकियां कुछेक ही रहेंगी .... जरा सोचो तब क्या होगा .... और यदि स्त्रियों का अस्तित्व ही खत्म हो जाये सिर्फ़ पुरुष ही पुरुष बच जायें तब जरा सोचो क्या होगा !!! ..... कल्पना करना ही भयानक व असहजता की अनुभूति पैदा कर रहा है अगर ये सच हो जाये तब ...... उफ़...उफ़्फ़ ..... इसलिये लडका या लडकी के जन्म की प्रक्रिया में छेडछाड, भेदभाव, होशियारी सर्वथा अनुचित व अव्यवहारिक है और रहेगा।

... स्त्री-पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं और रहेंगे, किसी एक के बिना समाज व मानव जीवन की कल्पना करना मूर्खता के अलावा कुछ भी नही है, बुद्धिमानी इसी में है दोनों कदम-से-कदम व कंधे-से-कंधा मिलाकर एक-दूसरे के हमसफ़र बनें और प्रेम बांटते चलें।

Thursday, September 9, 2010

कविता : मदिरा

वह सामने आकर,
मुझको लुभा गई
फ़िर धीरे से,
मुझमें समा गई
रोज सोचता हूं,
छोड दूं उसको
शाम हुई , उसकी याद
फ़िर से आ गई

दूर भागा,
तो सामने आ गई
मैं पूछता हूं ,
क्यों छोडती नहीं मुझको
वह "बेजुबां" होकर भी,
मुझसे लड गई
क्यूं भागता है,
डर कर मुझसे
तू सदा पीते आया है मुझे
क्या आज मै तुझे पी जाऊंगी !

ये माना,
तेरे इस "सितमगर" शहर में
हर कदम पर
"बेवफ़ा" बसते हैं
डर मत
मै बेवफ़ा नहीं - मै बेवफ़ा नहीं।

Tuesday, September 7, 2010

मैकदा


क्यूँ खफा हो, अब वफा की आस में
हम बावफा से, बेवफा अब हो गये हैं।

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छोड दूँ मैं मैकदा, क्यों सोचते हो
कौन है बाहर खडा, जो थाम लेगा।

Saturday, September 4, 2010

परिवर्तन

आज नहीं, तो कल
होगा "परिवर्तन"

चहूं ओर फ़ैले होंगे पुष्प
और मंद-मंद पुष्पों की खुशबू
उमड रहे होंगे भंवरे
तितलियां भी होंगी
और होगी चिडियों की चूं-चूं
चहूं ओर फ़ैली होगी
रंगों की बौछार

आज नहीं, तो कल
होगा "परिवर्तन"

न कोई होगा हिन्दु-मुस्लिम
न होगा कोई सिक्ख-ईसाई
सब के मन "मंदिर" होंगे
और सब होंगे "राम-रहीम"

न कोई होगा भेद-भाव
न होगी कोई जात-पात
सब का धर्म, कर्म होगा
और सब होंगे "कर्मवीर"

आज नहीं, तो कल
होगा "परिवर्तन"।

Thursday, September 2, 2010

शेर

तू तन्हा क्यों समझता है खुद को ‘उदय’
हम जानते हैं कारवाँ तेरे साथ चलता है।

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रोज आते हो, चले जाते हो मुझको देखकर
क्या तमन्ना है जहन में, क्यूँ बयां करते नहीं।

Wednesday, September 1, 2010

भारत की पहचान

एक छोटी सी बात अलग है
भारत की पहचान अलग है

कुंभ का स्नान अलग है
हिमालय की शान अलग है
फ़ौजों का आगाज अलग है
रिश्तों में मिठास अलग है

एक छोटी सी ............

होली की गुलाल अलग है
दीवाली की रात अलग है
दोस्ती का मान अलग है
दुश्मनी की घात अलग है

एक छोटी सी ............

इंसा का ईमान अलग है
नारी का स्वाभिमान अलग है
सर्व-धर्म की बात अलग है
भारत की पहचान अलग है

एक छोटी सी बात अलग है
भारत की पहचान अलग है ।

Tuesday, August 31, 2010

अंगप्रदर्शन .... इतना विरोध क्यों !!!

आये दिन सुनने व देखने को मिलता है कि फ़ला महिला संघठन ने, फ़ला पार्टी ने फ़िल्मों में हो रहे अश्लील व भद्दे प्रदर्शन का जमकर विरोध किया .... घंटों नारेबाजी चली ... फ़िल्म का प्रदर्शन नहीं होने दिया ...पोस्टर फ़ाड दिये गये ... फ़ला शहर, फ़ला राज्य में फ़िल्म रिलीज नहीं होने देंगे ... बगैरह ...बगैरह ....लेकिन क्या फ़र्क पडता है कुछ समय की "चिल्ल-पों" ...फ़िर वही, जो होता आया है, जो हो रहा है ... फ़िल्म रिलीज... हाऊसफ़ुल ... ब्लैक टिकिट की मारा-मारी .... फ़िल्म ने आय के नये कीर्तिमान बनाये ... सुपर-डुपर हिट ... करीना ने क्या काम किया ... क्या सीन है ... मजा आ गया ...

.... अब क्या कहें फ़िल्म तो फ़िल्म हैं बनते आ रही हैं बनते रहेंगी ... अंगप्रदर्शन ...चलता है थोडा-बहुत तो हर फ़िल्म में रहता है ये कोई आज की बात नहीं है ३०-४० साल पहले की फ़िल्मों मे भी देखने मिल जाता है ... आज करीना... कैटरीना ...सुश्मिता ...प्रियंका ... ऎसा कुछ अलग नहीं कर रहीं जो मुमताज ...बैजयंती माला ...सायरा बानो ने नहीं किया ... ये बात और है कि पहले सब "स्मूथली" चलता था पर अब पहले विरोध बाद में सब "टांय-टांय" फ़िस्स ...विरोध भी इसलिये कि विरोध करना है ....

...खैर छोडो ये सब तो चलते रहता है ...छोडो, क्यों छोडो ... अरे भाई, जब फ़िल्म बनाने वाले, फ़िल्म में काम करने वाले, फ़िल्म देखने वाले ... सब खुश, तो बेवजह का विरोध क्यों ... चलो ये सब तो ठीक है फ़िल्मों में विभत्स हत्याएं, दिलदहला देने वाले बलात्कार के द्रष्य, अंग-भंग के क्रुरतापूर्ण द्रष्य, अजीबो-गरीब लूट-डकै्ती के कारनामे, बच्चों का क्रुरतापूर्ण शोषण, तरह तरह के आपराधिक फ़ार्मूले दिखाये जाते हैं उनका विरोध क्यों नहीं ...क्या इन सीन/द्रष्यों को देखकर रोंगटे खडे नहीं होते! क्या इस तरह के फ़िल्मांकन को देखकर मन विचलित नहीं होता ... क्या फ़िल्मों में सिर्फ़ अंगप्रदर्शन के द्रष्य ही दिखाई देते हैं !! ...ठीक है विरोध जायज है पर अंगप्रदर्शन का ही इतना विरोध क्यों, किसलिये !!!

Sunday, August 29, 2010

सत्य-अहिंसा

सत्य-अहिंसा के पथ पर
आगे बढने से डरता हूं
कठिन मार्ग है मंजिल तक
रुक जाने से डरता हूं

हिंसा रूपी इस मंजर में
कदम पटक कर चलता हूं
कदमों की आहट से
हिंसा को डराते चलता हूं

झूठों की इस बस्ती में
फ़ंस जाने से डरता हूं
'सत्य' न झूठा पड जाये
इसलिये "कलम" दिखाते चलता हूं

सत्य-अहिंसा के पथ पर
आगे बढने ......................।

Friday, August 27, 2010

शेर

कभी हम चाहते कुछ हैं, हो कुछ और जाता है
जतन की भूख है ऎसी, अमन को भूल जाते हैं ।

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तुम्हे फुर्सत-ही-फुर्सत है, ‘आदाब-ए-मोहब्बत’ की
हमें फुर्सत नहीं यारा, ‘सलाम-ए-मोहब्बत’ की ।