Monday, May 17, 2010

दानवीर सेठ

एक सेठ जी को महान बनने का विचार मन में "गुलांटी" मार रहा था वे हर समय चिंता मे रहते थे कि कैसे "महान" बना जाये, इसी चिंता में उनका सोना-जगना , खाना-पीना अस्त-व्यस्त हो गया था। कंजूसी के कारण दान-दया का विचार भी ठीक से नहीं बन पा रहा था बैठे-बैठे उनकी नजर घर के एक हिस्से मे पडे कबाडखाने पर पड गई खबाडखाने के सामने घंटों बैठे रहे और वहीं से उन्हे "महान" बनने का "आईडिया" मिल गया। दूसरे दिन सुबह-सुबह सेठ जी कबाड से पन्द्रह-बीस टूटे-फ़ूटे बर्तन - लोटा, गिलास, थाली, प्लेट इत्यादि झोले मे रखकर निकल पडे, पास मे एक मंदिर के पास कुछ भिखारी लाईन लगाकर बैठे हुये थे, सेठ जी ने सभी बर्तन भिखारियों में बांट दिये, बांटकर सेठ जी जाने लगे तभी एक भिखारी ने खुद के पेट पर हाथ रखते हुये कहा "माई-बाप" कुछ खाने-पीने को भी मिल जाता तो हम गरीबों की जान में जान आ जाती, सेठ जी ने झुंझला कर कहा "सैकडों रुपये" के बर्तन दान में दे दिये अब क्या मेरी जान लेकर ही दम लोगे ....... झुंझलाते हुये सेठ जी जाने लगे ...... तभी पीछे से भूख से तडफ़ रहे भिखारियों ने ...सेठ जी ... सेठ जी कहते हुये बर्तन उसके ऊपर फ़ेंक दिये और बोले .... बडा आया "दानवीर" बनने।

3 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सच है भूख के सामने सोना चांदी कुछ भी नहीं...फिर बर्तन क्या हैं

arvind said...

तभी पीछे से भूख से तडफ़ रहे भिखारियों ने ...सेठ जी ... सेठ जी कहते हुये बर्तन उसके ऊपर फ़ेंक दिये और बोले .... बडा आया "दानवीर" बनने। .....kafi rochak.jor kaa jhatka.bhukh duniya ki sabse bada dard hai.

बाल भवन जबलपुर said...

मह्त्व पूर्ण बोध कथा है मित्र