एक जिद ही है, जो हमें जिंदा रखे है
पत्थरों पे हम, इबारत लिख रहे हैं ।
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किसी तूफ़ान से भी कम, नहीं मेरे इशारे हैं
समझ जाओ तो जन्नत है, न समझे तो तूफ़ां है ।
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मेरी दुनिया है क्या, मत पूछो ये तुम मुझसे
कभी रोकर - कभी हंसकर, खिलौने बांट देता हूं ।
पत्थरों पे हम, इबारत लिख रहे हैं ।
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किसी तूफ़ान से भी कम, नहीं मेरे इशारे हैं
समझ जाओ तो जन्नत है, न समझे तो तूफ़ां है ।
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मेरी दुनिया है क्या, मत पूछो ये तुम मुझसे
कभी रोकर - कभी हंसकर, खिलौने बांट देता हूं ।
9 comments:
khoobsurat......wah...
कभी रोकर कभी हँसकर.......
लाजबाब ।
किसी तूफ़ान से भी कम, नहीं मेरे इशारे हैं
समझ जाओ तो जन्नत है, न समझे तो तूफ़ां है ।
.......bilkut sahi.samjho to jannat varna tufan.....
एक जिद ही है जो हमें जिन्दा रखे है
पत्थरों पे हम इबारत लिख रहे हैं
...गहरी वेदना के स्वर झलकते हैं ... .....
अच्छे शेर बना दिए आपने उदय जी.. हम-आप लगे रहे तो हिन्दुस्तान में शेरों की कमी ना रहेगी.. :)
एक जिद ही है, जो हमें जिंदा रखे है
पत्थरों पे हम, इबारत लिख रहे हैं ।
अच्छा लिखा है!
badhiya she;r he bhai udayji.
बहुत खूब ....
मेरी दुनिया है क्या, मत पूछो ये तुम मुझसे
कभी रोकर - कभी हंसकर, खिलौने बांट देता हूं ।..
बहुत अच्छा ..
कभी रोकर - कभी हंसकर, खिलौने बांट देता हूं ... awesome!
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