Sunday, May 16, 2010

शेरों का सफ़र

एक जिद ही है, जो हमें जिंदा रखे है
पत्थरों पे हम, इबारत लिख रहे हैं ।
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किसी तूफ़ान से भी कम, नहीं मेरे इशारे हैं
समझ जाओ तो जन्नत है, न समझे तो तूफ़ां है ।
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मेरी दुनिया है क्या, मत पूछो ये तुम मुझसे
कभी रोकर - कभी हंसकर, खिलौने बांट देता हूं ।

9 comments:

योगेन्द्र मौदगिल said...

khoobsurat......wah...

अरुणेश मिश्र said...

कभी रोकर कभी हँसकर.......
लाजबाब ।

arvind said...

किसी तूफ़ान से भी कम, नहीं मेरे इशारे हैं
समझ जाओ तो जन्नत है, न समझे तो तूफ़ां है ।
.......bilkut sahi.samjho to jannat varna tufan.....

कविता रावत said...

एक जिद ही है जो हमें जिन्दा रखे है
पत्थरों पे हम इबारत लिख रहे हैं
...गहरी वेदना के स्वर झलकते हैं ... .....

दीपक 'मशाल' said...

अच्छे शेर बना दिए आपने उदय जी.. हम-आप लगे रहे तो हिन्दुस्तान में शेरों की कमी ना रहेगी.. :)

दिनेश शर्मा said...

एक जिद ही है, जो हमें जिंदा रखे है
पत्थरों पे हम, इबारत लिख रहे हैं ।
अच्छा लिखा है!

अमिताभ श्रीवास्तव said...

badhiya she;r he bhai udayji.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूब ....

मेरी दुनिया है क्या, मत पूछो ये तुम मुझसे
कभी रोकर - कभी हंसकर, खिलौने बांट देता हूं ।..


बहुत अच्छा ..

पवन धीमान said...

कभी रोकर - कभी हंसकर, खिलौने बांट देता हूं ... awesome!