Wednesday, May 26, 2010

शेरों का कारवां

उदय’ तेरी आशिकी, बडी अजीब है

जिससे भी तू मिला, उसे तन्हा ही कर गया।
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झौंके बन चुके हैं हम हवाओं के

तेरी आँखों को अब हमारा इंतजार क्यों है।

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वतन की खस्ताहाली से मतलब नहीं उनको
वतन के शिल्पी होकर जो गददार बन बैठे।

2 comments:

Udan Tashtari said...

बढ़िया शेर निकाले हैं, बधाई!

प्रकाश पंकज | Prakash Pankaj said...

वतन की खस्ताहाली से मतलब नहीं उनको
वतन के शिल्पी होकर जो गददार बन बैठे।


...wah kya baat kahi hai apne