‘उदय’ तेरी आशिकी, बडी अजीब है
जिससे भी तू मिला, उसे तन्हा ही कर गया।
जिससे भी तू मिला, उसे तन्हा ही कर गया।
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झौंके बन चुके हैं हम हवाओं के
तेरी आँखों को अब हमारा इंतजार क्यों है।
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वतन की खस्ताहाली से मतलब नहीं उनको
वतन के शिल्पी होकर जो गददार बन बैठे।
2 comments:
बढ़िया शेर निकाले हैं, बधाई!
वतन की खस्ताहाली से मतलब नहीं उनको
वतन के शिल्पी होकर जो गददार बन बैठे।
...wah kya baat kahi hai apne
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