जात-पात का "ढोंग-धतूरा" आज भी कुछ लोगों की नसों में खून की तरह दौड रहा है .... आज भी कुछ लोग जात-पात की "डफ़ली-मंजीरे" बजाने से बाज नहीं आ रहे हैं..... लेकिन वही लोग जब शहर जाते हैं तब होटल में चाय-भजिया का आनंद लेते समय नहीं पूंछ्ते - किसने बनाया, कौन परोस रहा है ....... फ़िर चाहे मुर्गा-मछली गटा-गट .... दारू के अड्डे पे तो सब भाई भाई .... जब बाहर स्त्री समागम का अवसर मिले तो कोई जात-धर्म नहीं!!
..... फ़िर क्यों कुछ लोग गांव में अथवा मोहल्ले में ही अपनी बडी जात होने का ढिंढोरा पीटने से बाज नहीं आते क्या छोटी जात के लोग गांव में ही बसते हैं या फ़िर गांव पहुंचते ही लोगों की जात बडी हो जाती है .... तभी तो कुछ लोग गांव में किसी-किसी के घर का पानी नहीं पीते .... किसी-किसी के घर उठते-बैठते नहीं .... कुएं पर ऊंची जात - नीची जात के पनघट ..... अजब रश्में-गजब रिवाज !!
..... गांव में उनका अदब हो .... ऊंची जात का होने के नाते मान-सम्मान हो ... क्यों,किसलिये .... क्या ऊंची जात के हैं सिर्फ़ इसलिये ही सम्मान के पात्र हैं ... या फ़िरमान-सम्मान का कोई दायरा होना चाहिये .... क्या मान-सम्मान के लिये सतकर्म, उम्र, व्यवहार का मापदंड नहीं होना चाहिये .... सच तो यही है कि पढे-लिखे समाज में, शहरोंमें, विकासशील राष्ट्रों में मान-सम्मान का दायरा जातिगत न होकर निसंदेह व्यवहारिकहै .... आज हमें भी अपनी सोच व व्यवहार में बदलाव लाना ही पडेगा .... जात-पात केप्रपंचों से दूर होना पडेगा ... नहीं तो हमारे शिक्षित व विकसित होने का क्या औचित्य है !!!
4 comments:
हमसब अशिक्षित व असभ्य है ..इसी में से कुछ लोग असल शिक्षित व सभ्य होने की लड़ाई लड़ रहें है समय बताएगा की जीत किसकी होती है ...क्योकि चारों तरफ अशिक्षित व असभ्य बनाने की दुकान सजी हुयी है इन तथाकथित गुणवत्ता आधारित शिक्षा देने के नाम पर ?
सही कहा अउदय जी, जात पात के चक्करों से निकले बिना इस देश का भला न होगा।
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ये साहस के पुतले ब्लॉगर।
व्यायाम द्वारा बढ़ाएँ शारीरिक क्षमता।
..बहुत ही सार्थक और सामयिक मुद्दा..साधुवाद
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