प्रार्थना से तात्पर्य किसी आवश्यकता की प्राप्ति हेतु अनुरोध करना है, यह अनुरोध प्रत्येक मनुष्य करता है जब कभी भी उसे कुछ विशेष पाने की चाह होती है वह अपने अपने ढंग से अनुरोध अवश्य करता है।
जब किसी मनुष्य को यह प्रतीत होता है कि अमुक सामने वाला व्यक्ति उसके अनुरोध की पूर्ति कर सकता है तब वह उस व्यक्ति से आवश्यकता की पूर्ति हेतु प्रत्यक्ष रूप से अनुरोध कर लेता है किन्तु जब उसे यह जानकारी नहीं होती कि उसकी आवश्यकता की पूर्ति करना किसके हाथ में है तब वह ईश्वर से प्रार्थना करता है।
ईश्वर, ईष्ट देव, गुरु, कुदरती शक्ति प्राप्त किसी व्यक्तित्व के समक्ष जब इंसान प्रार्थना करता है तब उसे इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिये कि प्रार्थना नाम,यश,कीर्ति,सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिये होना चाहिये, न कि मन में बसे किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिये।
संभव है ईश्वर ने आपके लिये, आपके द्वारा प्रार्थना में चाहे गए "विशेष उद्देश्य" से हटकर "कुछ और ही लक्ष्य" निर्धारित कर रखा हो, ऎसी परिस्थिति में प्रार्थना में चाहे गए लक्ष्य तथा ईश्वर द्वारा आपके लिये निर्धारित लक्ष्य दोनों समय-बेसमय आपकी मन: स्थिति को असमंजस्य में डालने का प्रयत्न करेंगे।
इसलिये मेरा संदेश मात्र इतना ही है कि जब भी आप प्रार्थना करें नाम, यश, कीर्ति, सुख - समृद्धि प्राप्ति के लिये ही करें।
जय गुरुदेव
( विशेष टीप :- यह लेख आचार्य जी ब्लाग पर प्रकाशित है।)
10 comments:
ईश्वर, ईष्ट देव, गुरु, कुदरती शक्ति प्राप्त किसी व्यक्तित्व के समक्ष जब इंसान प्रार्थना करता है तब उसे इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिये कि प्रार्थना नाम,यश,कीर्ति,सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिये होना चाहिये, न कि मन में बसे किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिये।
......bilkul sahi baat kahai aapne, Prarthana mein vishwavyapi udeshya bhi hona chahiye..
Saarthak chintanyukt prastuti ke liye aabhar
ईश्वर, ईष्ट देव, गुरु, कुदरती शक्ति प्राप्त किसी व्यक्तित्व के समक्ष जब इंसान प्रार्थना करता है तब उसे इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिये कि प्रार्थना नाम,यश,कीर्ति,सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिये होना चाहिये, न कि मन में बसे किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिये।
......bilkul sahi baat kahai aapne, Prarthana mein vishwavyapi udeshya bhi hona chahiye..
Saarthak chintanyukt prastuti ke liye aabhar
आपने बहुत सुन्दर लिखा है जो काबिले तारीफ़ है! बहुत बढ़िया लगा!
बहुत बढ़िया लगा!
बढ़िया
असहमत। मनुष्य अपना ओछापन प्रार्थना में भी नहीं छोड़ना चाहता। नाम,यश,कीर्ति,सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिये की गई प्रार्थना प्रभु तक नहीं पहुंच सकती। जब इतने सामीप्य का अहसास होने लगे कि प्रभु आपकी बात सुन सकते हैं,क्या तब भी ध्यान स्वयं प्रभु से हटाकर नाम,यश,कीर्ति,सुख-समृद्धि पर केंद्रित करना उचित होगा?
@शिक्षामित्र
...svaagat hai !!!!
uday bhaayi praarthna ko khub achche andaaz men pribhaashit kiyaa he lekin praarthnaa khud ke iyen dusron ke liyen or snsaar ke liyen bhi ki jaanaa chaahiye. akhtar khan akela kota rajsthan
सार्थक और सौ आने की बात कही है । अच्छा लगा । अनंत शुभ कामनाएं ।
जय गुरुदेव!!
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