Friday, August 27, 2010

शेर

कभी हम चाहते कुछ हैं, हो कुछ और जाता है
जतन की भूख है ऎसी, अमन को भूल जाते हैं ।

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तुम्हे फुर्सत-ही-फुर्सत है, ‘आदाब-ए-मोहब्बत’ की
हमें फुर्सत नहीं यारा, ‘सलाम-ए-मोहब्बत’ की ।

2 comments:

arvind said...

जतन की भूख है ऎसी, अमन को भूल जाते हैं...vaah bahut khub.

Unknown said...

above my head...