शब्दों की भीड में
चुनता हूं
कुछ शब्दों को
आगे-पीछे
ऊपर-नीचे
रख-रखकर
तय करता हूं
भावों को
शब्दों की तरह ही
'भाव' भी होते हैं आतुर
लडने-झगडने को
कभी सुनता हूं
कभी नहीं सुनता
क्यॊं ! क्योंकि
करना होता है
सृजन
एक 'रचना' का
शब्द, भाव, मंथन
मंथन से ही
संभव है
सृजन
एक "रचना" का !
5 comments:
बहुत बढ़िया लिखा आपने...पसंद आई आपकी रचना.
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पाखी की दुनिया में- 'जब अख़बार में हुई पाखी की चर्चा'
Sach hee to hai...
Aisa hi hota hai!
Badhai!
शब्द, भाव, मंथन
मंथन से ही
संभव है
सृजन
एक "रचना" का
सटीक और खूबसूरत अभिव्यक्ति....मेरे ब्लॉग पर आने का शुक्रिया
Kabhi,kabhi itni stabdh ho jati hun,ki, mujhe tppanee dene aati..!
Sundar bharpurn rachna ke liye dhanyavad.
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