वो रहनुमा 'दोस्त' बनकर,
हमसे मिलते रहे
और हम उन्हें,
अपना हमदम समझते रहे
चलते-चलते,
ये हमें अहसास न हुआ
कि वो दोस्त बनकर,
दुश्मनी निभा रहे हैं
एक-एक बूंद 'जहर',
रोज हमको पिला रहे हैं
अब हर कदम पर देखता हूं,
उनका 'हुनर'
हर 'हुनर' को देखकर ,
अब सोचता हूं
'दोस्ती' से दुश्मनी ज्यादा भली थी
तुम दुश्मन होते,
तो अच्छा होता
कम-से-कम मेरी पीठ में,
खंजर तो न उतरा होता
संतोष कर लेता,
देखकर खरोंच सीने की
अब चाहूं तो कैसे देखूं,
वो निशान पीठ के
अब 'उदय' तुम ही कुछ कहो
किसे 'दोस्त', और दुश्मन किसे कहें।
8 comments:
सच कहते हैं कभी कभी दुश्मन दोस्तों से ज्य्यादा भले लगते हैं
संतोष कर लेता,
देखकर खरोंच सीने की
अब चाहूं तो कैसे देखूं,
वो निशान पीठ के
" इन पंक्तियों ने बेहद प्रभावित किया..."
regards
दोस्ती' से दुश्मनी ज्यादा भली थी
तुम दुश्मन होते,
तो अच्छा होता
किसी ने कहा भी है कि दोस्तों को आजमाते जाइये ,दुश्मनों से प्यार हो जायेगा
संतोष कर लेता,
देखकर खरोंच सीने की
अब चाहूं तो कैसे देखूं,
वो निशान पीठ के
अब 'उदय' तुम ही कुछ कहो
किसे 'दोस्त', और दुश्मन किसे कहें। ......bahut hi prabhaavashaali pamktiyaan.lekin uday bhai jab tak dost dhokha n de tab tak achhi tarah pahchan bhi nahi ho paati hai.kahate hain......ham to chaahate hi yahi the ki tu bevafaa nikale,tujhe samajhane ka kuch to silsila nikale.
संतोष कर लेता,
देखकर खरोंच सीने की
अब चाहूं तो कैसे देखूं,
वो निशान पीठ के
अब 'उदय' तुम ही कुछ कहो
किसे 'दोस्त', और दुश्मन किसे कहें ...
सच है ... आज दोस्ती और दुश्मन की पहचान बहुत मुश्किल है .... अच्छा लिखा है .....
दोस्त और दुश्मन की सही पडताल की है आपने।
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क्या हमें ब्लॉग संरक्षक की ज़रूरत है?
नारीवाद के विरोध में खाप पंचायतों का वैज्ञानिक अस्त्र।
सच है कभी कभी दोस्त और दुश्मन का फ़र्क मिट जाता है !
i tell u i love it
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