एक महाशय के घर पडौस के गांव से एक परिवार लडकी देखने आया, लडके व उसके माता-पिता का शानदार स्वागत किया गया, बडी लडकी जिसकी शादी की बात चल रही थी वह ही "सझी-संवरी" मिष्ठान इत्यादि परोस रही थी इसी दौरान लडका-लडकी का आपस मे परिचय कराया गया, इसी बीच छोटी लडकी भी चाय का ट्रे लेकर पहुंच गई, वह ट्रे को मेज पर रखकर अभिवादन स्वरूप हाथ जोडकर बैठ गई, स्वल्पाहार व बातचीत चलती रही, इसी बीच लडके व उसके मा-बाप की नजर बार-बार छोटी लडकी पर जा रही थे उसका कारण ये था कि बडी लडकी थोडी सांवली व दुबली थी और छोटी लडकी गोरी व खूबसूरत थी, स्वल्पाहार के पश्चात दोनो परिवार एक-दूसरे से विदा हुए, मेहमानों का हाव-भाव व चेहरे की प्रसन्नता देखकर रिश्ता पक्का लग रहा था इसलिये लडकी का पूरा परिवार खुश था किंतु हां-ना का जबाव नहीं मिला था।
एक-दो दिन बाद लडकी का पिता पडौस के गांव लडके के घर गया, शानदार हवेली थी काफ़ी अमीर जान पड रहे थे लडके व उसके माता-पिता ने बहुत अच्छे ढंग से स्वागत किया और बोले हमें आपके साथ रिश्तेदारी मंजूर है लेकिन एक छोटी सी समस्या है मेरे लडके को आपकी छोटी लडकी पसंद है और उसी से शादी करूंगा कह रहा है। लडकी का पिता प्रस्ताव सुनकर थोडी देर के लिये सन्न रह गया ...... फ़िर बैठे-बैठे ही मन के घोडे दौडाने लगा ..... लडका अच्छा है .....अमीर परिवार है ..... हवेली भी शानदार है .... व्यापार-कारोबार भी अच्छा है ...बगैरह-बगैरह ... उसने परिवार के सदस्यों की राय लिये बगैर ही छोटी लडकी के साथ शादी के लिये हां कह दी ........ हां सुनते ही खुशी का ठिकाना न रहा .... गले मिलने व जोर-शोर से स्वागत का दौर चल पडा ..... खुशी-खुशी विदा होने लगे ..... लडके के पिता ने लडडुओं की टोकरी व वस्त्र इत्यादि भेंट स्वरूप घर ले जाने हेतु दिये।
खुशी-खुशी लडकी का पिता घर पहुंचा रिश्ता तय होने की खुशी मे सबको मिठाई खिलाई ..... पूरा परिवार खुशी से झूम गया .... छोटी बहन-बडी बहन दोनों खुश थे गले लग कर छोटी ने बडी बहन को बधाई दी .......सब की खुशियां देख बाप ने थोडा सहमते हुए सच्चाई बताई ...... सच्चाई सुनकर सन्नाटा सा छा गया ........ दो-तीन दिन सन्नाटा पसरा रहा .... जब सन्नाटा टूटा तो "लालची बुढडे" का चेहरा गुस्से से तिलमिला गया उसे शादी की खुशियां "ना" मे बदलते दिखीं ..... छोटी लडकी ने शादी से साफ़-साफ़ इंकार कर दिया .......परिवार के सभी इस रिश्ते के खिलाफ़ हो गये।
.....दो-तीन घंटे की गहमा-गहमी के बाद भी कोई बात नहीं बनी तब "लालची बुढडा" गुस्से ही गुस्से में घर से बाहर निकल गया ......... कुछ दूरी पर ही वह मुझसे टकरा गया ....... मैंने कहा क्या बात है भाई, गुस्से मे क्यों चेहरा लाल-पीला किये घूम रहे हो ........ उसने धीरे से सारा किस्सा सुनाया ..... देखो भाई साहब घर बालों ने मेरी "जुबान" नहीं रखी ..... मेरी इज्जत डुबाने में तुले हैं .... कितना अमीर परिवार है अब मैं उन्हे क्या जबाब दूंगा .... उसकी बातें सुनते-सुनते ही मेरे मन में ये विचार बिजली की तरह कौंधा ..... क्या "लंपट बाबू "है, लालच मे बडी की जगह छोटी लडकी की शादी तय कर आया ..... ।
...........अब क्या कहूं मुझसे भी रहा नहीं जाता कुछ-न-कुछ "कडुवा सच" मेरे मुंह से निकल ही जाता है ....... मैने कहा ..... दो-चार दिन के मेहमान हो, वैसे भी एक पैर "कबर" में है और दूसरा "कबर" के इर्द-गिर्द ही घूमते रहता है ... लालच मे मत पडो कोई दूसरा अच्छा लडका मिल जायेगा .....कहीं ऎसा होता है कि बडी की बात चल रही हो और कोई छोटी के लिये हां कह दे ..... घर जाओ, जिद छोडो बच्चों की हां मे ही "हां" है और "खुशी मे ही खुशी" ।
3 comments:
"कडुवा सच".sahi kahaa bacchon ki han me han our khushi me khushi.
इसमें पिता की भूमिका लालची की नहीं है.....हाँ ये ज़रूर है कि बच्चों कि राय लिए बिना ये फैसला करना सही नहीं था...बेटियों की भावनाओं को समझना चाहिए
बच्चे तो भगवान का रूप होते हैं और उनकी ख़ुशी में ही सबकी ख़ुशी होती है! पर हमेशा बच्चों की ज़िद को नहीं मानना चाहिए ! अगर बड़ों को लगे की बच्चे सही कह रहे है तो वो बच्चों का साथ ज़रूर देंगे !
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