Sunday, July 25, 2010

'सत्यामृत'

आओ चलें, वहां - जहां
'सत्यामृत' झर रहा है

चलते-चलते न रुकें
बढते-बढते, बढते रहें
हम भी पहुंचे वहां
जहां 'सत्यामृत' झर रहा है

एक बूंद पाकर
हम भी
अजर-अमर हो
"सत्यामृत" बन जाएं

आओ चलें, वहां - जहां
'सत्यामृत' .............।

5 comments:

Randhir Singh Suman said...

nice

Unknown said...

wah re shyaam..........

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

वो जगह ही तो नहीं पाता..इस धरती पर तो मिलना मुश्किल है....

बहुत खूबसूरत भावना लिखी है

shama said...

Bas usee jagah ka pata to bata den....!

कुमार राधारमण said...

कबीर कहते हैः
रस गगन गुफा में अजर झरै
बिन बाजा झनकार करै कोई
समुझि पड़ै जब ध्यान धरै
रस गगन गुफा में अजर झरै.....

सचमुच,अंतर्यात्रा शुरू होते ही सत्य के दर्शन होने लगते हैं।