Thursday, June 10, 2010

शेर दिल

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फूल कश्ती बन गये, आज तो मझधार में
जान मेरी बच गई, माँ तेरी दुआओं से।

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‘उदय’ से लगाई थी आरजू हमने
अब क्या करें वो भी हमारे इंतजार मे थे।

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6 comments:

दिलीप said...

waah waah sir pehla wala to lajawaab

Jandunia said...

इस पोस्ट के लिेए साधुवाद

पवन धीमान said...

....वो भी हमारे इंतजार मे थे..Ji bahut khoob

अरुणेश मिश्र said...

WAH......WAH....

Mumukshh Ki Rachanain said...

बढ़िया प्रस्तुति.
हार्दिक बधाई.

चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर

SomeOne said...

वाह ! आचार्य जी , बहुत खूब !