पीछे पलट के देखने की फुर्सत कहाँ हमें
कदम-दर-कदम हैं मंजिलें बडी ।
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हम जानते हैं तुम, मर कर न मर सके
हम जीते तो हैं, पर जिंदा नही हैं।
कदम-दर-कदम हैं मंजिलें बडी ।
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हम जानते हैं तुम, मर कर न मर सके
हम जीते तो हैं, पर जिंदा नही हैं।
4 comments:
मर कर ना मरना ...
जीना ही कौन जिन्दा होना ...
वाह !
हम जानते हैं तुम, मर कर न मर सके
हम जीते तो हैं, पर जिंदा नही हैं।
क्या बात है श्याम भाई !! हक है हक है !
हमज़बान का लिंक तो अपने यहाँ दें ख़ुशी होगी! अपन तो बहुत पहले आपको शामिल कर चुके हैं.
हमज़बान यानी समय के सच का साझीदार
पर ज़रूर पढ़ें:
काशी दिखाई दे कभी काबा दिखाई दे
http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_16.html
bahut khoob, udayji
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
बहुत बेहतरीन!
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