वह सामने आकर,
मुझको लुभा गई
फ़िर धीरे से,
मुझमें समा गई
रोज सोचता हूं,
छोड दूं उसको
शाम हुई , उसकी याद
फ़िर से आ गई
दूर भागा,
तो सामने आ गई
मैं पूछता हूं ,
क्यों छोडती नहीं मुझको
वह "बेजुबां" होकर भी,
मुझसे लड गई
क्यूं भागता है,
डर कर मुझसे
तू सदा पीते आया है मुझे
क्या आज मै तुझे पी जाऊंगी !
ये माना,
तेरे इस "सितमगर" शहर में
हर कदम पर
"बेवफ़ा" बसते हैं
डर मत
मै बेवफ़ा नहीं - मै बेवफ़ा नहीं।
6 comments:
सुंदर और सार्थक रचना
आभार ......
"नादान हैं जो समझते हैं,हम 'उसे'पिए जाते हैं,
हकीक़त यह की उसके द्वारा हम ही पिए जाते हैं."
अच्छी रचना उदय जी बधाई.
सार्थक रचना.
हर पल होंठों पे बसते हो, “अनामिका” पर, . देखिए
बहुत अच्छी प्रस्तुति .आभार
wah !!! bahut khoob !!
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