दोस्तो क्यों परेशान होते हो,
क्यों हैरान होते हो,
चांदी के चंद सिक्कों के लिए,
ज़रा सोचो,
चांदी के सिक्कों का करोगे क्या !
क्या इन सिक्कों को
आंखो पर रखने से नींद आ जाएगी,
या फिर इनसे,
रात की करवटें रुक जायेंगी,
और तो और, क्या कोई बतायेगा,
कि इन सिक्कों को देख कर,
क्या ‘यमदूत’ डर कर लौट जायेंगे,
या फिर, इन सिक्कों पर बैठ कर,
तुम स्वर्ग चले जाओगे,
या इन्हें जेब में रख कर,
अजर-अमर हो जाओगे,
अगर तुम सोचते हो,
ऐसा कुछ हो सकता है,
तो चांदी के सिक्के अच्छे हैं,
और तुम्हारी इनके लिए मारामारी अच्छी है,
अगर ऐसा कुछ न हो सके,
तो तुम से तो,
तुम्हारे चांदी के सिक्के अच्छे हैं,
तुम रहो, या न रहो,
ये सिक्के तो रहेंगे,
न तो तुम्हारे अपने और न ही ये सिक्के,
तुम्हें कभी याद करेंगे,
अगर ऐसा हुआ या होगा !
फिर ज़रा सोचो,
क्यों परेशान होते हो,
चांदी के चंद सिक्कों के लिए,
अगर होना ही है परेशान,
रहना ही है जीवन भर हलाकान्,
तो उन कदमों के लिए हो,
जो कदम उठें तो,
पर उठ कर कदम न रहें,
बन जायें रास्ते,
सदा के लिए, सदियोँ के लिये,
न सिर्फ तुम्हारे लिए,
न सिर्फ हमारे लिए..........।
11 comments:
achhee aur sacchee kavita... aakhir kee panktiyaan sabse sundar hain...
चांदी के सिक्के क्या कुछ भी साथ नहीं जाएगा...सच है... बहुत अच्छी कविता
बहुत ही उत्कृष्ट विचार ,धन्यवाद .
न तो तुम्हारे अपने और न ही ये सिक्के,
तुम्हें कभी याद करेंगे,
एक ऐसा सच जिसे जानते सब हैं पर मानते नहीं ...
काव्य की तरलता से अधिक विचारों की सघनता.
सच कहा है किसी ने दिल है कि मानता नहीं ।
बहुत खूब उदय भाई. बधाई.
Very good uday ji....chandi ke sikke..
bahut umda prastuti.... chandi sikkon ke zariye kahdi jeevan ki saari kahani
बहुत अच्छा उदय भाई जी ।
YE CHANDI KE SIKKE HUM APNE SATH NAHI LE JA PAYENGE, PAR IN SIKKON SE HUM KI JARURATMAND KI HELP TO KAR HI SAKTE HAIN. AAPKI RACHNA BAHUT ACHCHI HAI. DHANYWAD
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