‘उदय’ तेरे शहर में, हसीनों का राज है
तुम भी हो बेखबर, और हम भी हैं बेखबर ।
............................................
कहाँ से चले थे, कहाँ आ गये हम
हमें न मिले वो, जो कश्में भुला गये ।
............................................
चाहें तो सारी दुनिया भुला सकते हैं
न चाहें तो कैसे भुलाएँ हम तुम्हे।
तुम भी हो बेखबर, और हम भी हैं बेखबर ।
............................................
कहाँ से चले थे, कहाँ आ गये हम
हमें न मिले वो, जो कश्में भुला गये ।
............................................
चाहें तो सारी दुनिया भुला सकते हैं
न चाहें तो कैसे भुलाएँ हम तुम्हे।
6 comments:
बहुत सुन्दर बातें, मन को छू गयीं
आईये जानें ..... मन ही मंदिर है !
आचार्य जी
चाहें तो सारी दुनिया भुला सकते हैं
न चाहें तो कैसे भुलाएँ हम तुम्हे।
....it is so true
बहुत ही प्यारे शेर हैं, शुक्रिया।.
--------
रूपसियों सजना संवरना छोड़ दो?
मंत्रो के द्वारा क्या-क्या चीज़ नहीं पैदा की जा सकती?
आईये जानें .... मन क्या है!
आचार्य जी
wahwa...uday ji...wah..
Post a Comment