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फूल कश्ती बन गये, आज तो मझधार में
जान मेरी बच गई, माँ तेरी दुआओं से।
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‘उदय’ से लगाई थी आरजू हमने
अब क्या करें वो भी हमारे इंतजार मे थे।
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फूल कश्ती बन गये, आज तो मझधार में
जान मेरी बच गई, माँ तेरी दुआओं से।
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‘उदय’ से लगाई थी आरजू हमने
अब क्या करें वो भी हमारे इंतजार मे थे।
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6 comments:
waah waah sir pehla wala to lajawaab
इस पोस्ट के लिेए साधुवाद
....वो भी हमारे इंतजार मे थे..Ji bahut khoob
WAH......WAH....
बढ़िया प्रस्तुति.
हार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
वाह ! आचार्य जी , बहुत खूब !
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