एक समय था
जल रही थी
ऊंच-नीच की
'छोटी सी ज्वाला'
कुछ लोगों ने
आकर उस पर
जात-पात का
तेल छिडक डाला
भभक-भभक कर
भभक उठी
वह 'छोटी सी ज्वाला'
फ़िर क्या था
कुछ लोगों ने
उसको अपना
हथियार बना डाला
न हो पाई मंद-मंद
वह 'छोटी सी ज्वाला'
अब गांव-गांव, शहर-शहर
हर दिल - हर आंगन में
दहक रही है 'छोटी सी ज्वाला' ।
9 comments:
bahut achhi aur sateek lagi aapki yah kavita..
अब गांव-गांव, शहर-शहर
हर दिल - हर आंगन में
दहक रही है 'छोटी सी ज्वाला' ।
Sundar rachna !
एक छोटी सी ज्वाला ही विकराल रूप ले लेती है.
सटीक.....अब यह छोटी कहाँ रही ? विकराल रूप ले लिया है
छोटी सी ज्वाला अंगारा बन गयी ...सुंदर प्रस्तुति.
सुन्दर रचना,सही नपे तुले शब्दों का प्रयोग किया गया है।
सुन्दर रचना,सही नपे तुले शब्दों का प्रयोग किया गया है।
सुन्दर रचना,सही नपे तुले शब्दों का प्रयोग किया गया है।
सुन्दर रचना,सही नपे तुले शब्दों का प्रयोग किया गया है।
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