कौन जाने, कब तलक, वो भटकता ही फिरे
आओ उसे हम ही बता दें ‘रास्ता-ए-मंजिलें’ ।
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क्यों शर्म से उठती नहीं, पलकें तुम्हारी राह पर
फिर क्यों राह तकते हो, गुजर जाने के बाद।
आओ उसे हम ही बता दें ‘रास्ता-ए-मंजिलें’ ।
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क्यों शर्म से उठती नहीं, पलकें तुम्हारी राह पर
फिर क्यों राह तकते हो, गुजर जाने के बाद।
7 comments:
waah sir...
wah wah wah wah
i have read this in ur blog!!!:)
कौन जाने, कब तलक, वो भटकता ही फिरे
आओ उसे हम ही बता दें ‘रास्ता-ए-मंजिलें’ ।
.......bahut hi sundar,laajabaab.
बहुत बढ़िया प्रस्तुति......
oh ...to aachary ji wala aapka hi blog hai ....?
par iski kya aavaskta thi ....isi mein wah sab bhi likh sakte the .....!!
bahoot hi kam shabdon me badi baat kahna to koi aapse seekhe. shandaar racna, badhai.
http://udbhavna.blogspot.com/
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