Tuesday, June 15, 2010

शेर - शेर

कौन जाने, कब तलक, वो भटकता ही फिरे
आओ उसे हम ही बता दें ‘रास्ता-ए-मंजिलें’ ।

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क्यों शर्म से उठती नहीं, पलकें तुम्हारी राह पर
फिर क्यों राह तकते हो, गुजर जाने के बाद।

7 comments:

दिलीप said...

waah sir...

माधव( Madhav) said...

wah wah wah wah

Unknown said...

i have read this in ur blog!!!:)

arvind said...

कौन जाने, कब तलक, वो भटकता ही फिरे
आओ उसे हम ही बता दें ‘रास्ता-ए-मंजिलें’ ।
.......bahut hi sundar,laajabaab.

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

बहुत बढ़िया प्रस्तुति......

हरकीरत ' हीर' said...

oh ...to aachary ji wala aapka hi blog hai ....?
par iski kya aavaskta thi ....isi mein wah sab bhi likh sakte the .....!!

पंकज मिश्रा said...

bahoot hi kam shabdon me badi baat kahna to koi aapse seekhe. shandaar racna, badhai.
http://udbhavna.blogspot.com/